स्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म – BSEB class 8 social science history chapter 13 notes

15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन इसके साथ ही विभाजन की त्रासदी का सामना भी करना पड़ा। विभाजन के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। इस घटना ने भारतीय समाज, राजनीति, और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला।

BSEB class 8 social science history chapter 12 notes

इस लेख में, हम BSEB class 8 social science history chapter 13 notesस्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म” का विस्तृत अध्ययन करेंगे, जिसमें विभाजन के कारण, इसके परिणाम और स्वतंत्रता के बाद के भारत की स्थिति का विश्लेषण किया जाएगा।

स्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म – BSEB class 8 social science history chapter 13 notes

स्वतंत्रता और विभाजन

  • ब्रिटिश शासन का अंत:- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बढ़ते दबाव और विभिन्न आंदोलनों के कारण ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने का निर्णय लिया। 1947 में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का अंतिम वायसराय नियुक्त किया, जिनका मुख्य कार्यभार भारत को स्वतंत्रता दिलाना था।
  • मुस्लिम लीग और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत:- मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग की। उनका मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और उन्हें अलग-अलग राज्य चाहिए। जिन्ना के इस सिद्धांत के कारण भारत में राजनीतिक तनाव बढ़ गया और विभाजन अपरिहार्य हो गया।
  • माउंटबेटन योजना:- लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना प्रस्तुत की, जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना गया। इस योजना के तहत भारत को दो अलग-अलग राष्ट्रों में विभाजित किया गया – भारत और पाकिस्तान। पाकिस्तान के दो हिस्से थे: पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश)। यह विभाजन धार्मिक आधार पर किया गया था, जिसमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान और हिंदू बहुल क्षेत्रों को भारत में शामिल किया गया।

विभाजन के परिणाम

  • जनसंख्या विस्थापन:- विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर जनसंख्या विस्थापन हुआ। लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए और नए बने देशों में जाने के लिए मजबूर हो गए। इस विस्थापन ने भारी सांप्रदायिक हिंसा और संघर्ष को जन्म दिया। विभाजन के समय लगभग 10 से 15 मिलियन लोग सीमा पार करके नए देशों में गए।
  • सांप्रदायिक हिंसा:- विभाजन के समय सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। हिंदू, मुस्लिम, और सिख समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसमें लाखों लोग मारे गए और लाखों महिलाएं अपहरण और अत्याचार का शिकार हुईं। विभाजन की यह हिंसा मानवता के लिए एक काला अध्याय साबित हुई।
  • संपत्ति और संसाधनों का विभाजन:- भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति और संसाधनों का विभाजन भी एक बड़ी चुनौती थी। सरकारी संपत्ति, हथियार, और वित्तीय संसाधनों का बंटवारा करना पड़ा, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। विभाजन के कारण कई उद्योग और व्यापारिक प्रतिष्ठान भी प्रभावित हुए।
  • कश्मीर समस्या:- विभाजन के साथ ही कश्मीर मुद्दा उभर कर सामने आया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय का निर्णय लिया, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई। इसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर पर विवाद शुरू हुआ, जो आज भी जारी है। कश्मीर समस्या भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में एक स्थायी तनाव का कारण बनी हुई है।

स्वतंत्रता के बाद का भारत

  • संविधान सभा और संविधान निर्माण:- स्वतंत्रता के बाद भारत को एक मजबूत संविधान की आवश्यकता थी। संविधान सभा का गठन किया गया, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान सभा ने तीन साल के कठोर परिश्रम के बाद भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ, जिससे भारत एक गणराज्य बना।
  • प्रथम प्रधानमंत्री और नीतियाँ:- जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और सामाजिक सुधारों के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ और योजनाएँ शुरू कीं। नेहरू ने औद्योगिकीकरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, जिनका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित करना था।
  • भूमि सुधार और कृषि नीतियाँ:- नेहरू सरकार ने भूमि सुधार और कृषि नीतियों पर विशेष ध्यान दिया। जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया और किसानों को भूमि का मालिकाना हक दिया गया। इसने भारतीय कृषि में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भूमि सुधार नीतियों ने कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद की और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया।
  • पंचवर्षीय योजनाएँ:- नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, जिनका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित करना था। इन योजनाओं के तहत औद्योगिकीकरण, बुनियादी ढाँचे का विकास, और सामाजिक कल्याण के लिए कई परियोजनाएँ शुरू की गईं। पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) का मुख्य फोकस कृषि और सिंचाई था, जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) का ध्यान औद्योगिकीकरण पर केंद्रित था।

सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन

  • शिक्षा और साक्षरता:- स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कई कदम उठाए। शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने के उद्देश्य से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार किए गए।
  • महिला सशक्तिकरण:- महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई सामाजिक सुधार किए गए। महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अधिक अवसर प्रदान किए गए और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी उपाय किए गए।
  • जाति व्यवस्था में सुधार:- डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया गया। आरक्षण प्रणाली लागू की गई, जिससे समाज के पिछड़े वर्गों को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मिल सके।

आर्थिक परिवर्तन

  • औद्योगिकीकरण:- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने तेजी से औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए। इस दिशा में कई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना की गई और निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया गया।
  • हरित क्रांति:- 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि करना था। इसने भारतीय कृषि में आधुनिक तकनीकों और उन्नत बीजों के उपयोग को बढ़ावा दिया, जिससे कृषि उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।
  • आर्थिक उदारीकरण:- 991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, जिसके तहत विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया और कई सरकारी नियमों में छूट दी गई। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियाँ

  • गरीबी और बेरोजगारी:- स्वतंत्रता के बाद, भारत को गरीबी और बेरोजगारी जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सरकार ने इन समस्याओं को हल करने के लिए कई योजनाएँ और नीतियाँ लागू कीं, लेकिन पूरी तरह से इन्हें समाप्त करना एक बड़ी चुनौती रही।
  • जातिवाद और सांप्रदायिकता:- भारत में जातिवाद और सांप्रदायिकता स्वतंत्रता के बाद भी एक गंभीर समस्या बनी रही। कई क्षेत्रों में जाति आधारित भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होती रहीं।
  • क्षेत्रीय असमानता:- विभिन्न क्षेत्रों के बीच विकास की असमानता भी एक बड़ी चुनौती थी। कुछ राज्य तेजी से विकसित हुए, जबकि कुछ राज्य पिछड़े रहे। सरकार ने क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए विशेष योजनाएँ शुरू कीं।

स्वतंत्रता के बाद के प्रमुख नेता और उनके योगदान

जवाहरलाल नेहरू

  • अर्थव्यवस्था का विकास: नेहरू ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन: नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया, जो शीत युद्ध के दौरान तटस्थ देशों का समूह था।

डॉ. भीमराव अंबेडकर

  • संविधान निर्माण: अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा की।
  • सामाजिक सुधार: अंबेडकर ने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उनके सामाजिक उत्थान के लिए प्रयास किए।

सरदार वल्लभभाई पटेल

  • राष्ट्रीय एकता: पटेल ने भारतीय रियासतों का विलय करके भारतीय संघ की एकता सुनिश्चित की। उनकी इस भूमिका के कारण उन्हें ‘लौह पुरुष‘ के नाम से जाना जाता है।
  • प्रशासनिक सुधार: पटेल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रमुख घटनाएँ और सुधार

  • भाषा नीति और राज्यों का पुनर्गठन:- स्वतंत्रता के बाद भारत में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। 1956 में, राज्यों का पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की सिफारिशों के आधार पर भाषायी राज्यों का गठन किया गया। इस नीति का उद्देश्य विभिन्न भाषायी समूहों को उनकी भाषा और संस्कृति के अनुसार राज्य प्रदान करना था।
  • पंचायती राज और ग्रामीण विकास:- 1959 में, पंचायती राज प्रणाली की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देना था। इसके तहत गाँव स्तर पर पंचायतों का गठन किया गया, जिनका उद्देश्य ग्रामीण विकास और प्रशासन में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करना था।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति:- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना 1969 में की गई, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इसके अलावा, भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) की स्थापना 1948 में की गई, जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना था।

सामाजिक सुधार

  • दहेज प्रथा और बाल विवाह:- स्वतंत्रता के बाद, दहेज प्रथा और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कई कानून बनाए गए। 1961 में दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) पारित किया गया, जिसका उद्देश्य दहेज प्रथा को समाप्त करना था। इसके अलावा, बाल विवाह निरोधक अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act) 2006 में पारित किया गया, जिसका उद्देश्य बाल विवाह को रोकना था।
  • नारी सशक्तिकरण:- महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके सामाजिक उत्थान के लिए कई नीतियाँ और योजनाएँ लागू की गईं। 1993 में, महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान पंचायती राज संस्थाओं में लागू किया गया। इसके अलावा, 2013 में, यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों में संशोधन किया गया और सख्त प्रावधान लागू किए गए।

आर्थिक सुधार

  • उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण:- 1991 में, भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, जिसके तहत विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया और कई सरकारी नियमों में छूट दी गई। इस नीति का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के साथ जोड़ना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना था। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय उद्योग और सेवा क्षेत्र में वृद्धि हुई, जिससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आया।
  • सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर उद्योग:- 1990 के दशक में, भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर उद्योग में महत्वपूर्ण प्रगति की। बैंगलोर, हैदराबाद, और पुणे जैसे शहर आईटी हब के रूप में उभरे। भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों ने वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सांस्कृतिक परिवर्तन

  • सिनेमा और मनोरंजन उद्योग:- भारतीय सिनेमा और मनोरंजन उद्योग ने स्वतंत्रता के बाद विश्व मंच पर अपनी पहचान बनाई। हिंदी सिनेमा (बॉलीवुड) ने विश्वभर में अपनी धाक जमाई और भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया। सत्यजीत रे, राज कपूर, लता मंगेशकर, और अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों ने भारतीय सिनेमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
  • खेल और खेल कूद:- भारतीय खेल जगत ने भी स्वतंत्रता के बाद महत्वपूर्ण प्रगति की। हॉकी, क्रिकेट, बैडमिंटन, और कबड्डी जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। क्रिकेट में, भारत ने 1983 और 2011 में विश्व कप जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। बैडमिंटन में, पीवी सिंधु और साइना नेहवाल ने विश्व स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों का परचम लहराया।

स्वतंत्रता के बाद के प्रमुख आंदोलनों

  • चिपको आंदोलन:- 1970 के दशक में चिपको आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन का उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और पर्यावरण की रक्षा करना था। सुंदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी जैसे पर्यावरणविदों ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन:- नर्मदा बचाओ आंदोलन का उद्देश्य नर्मदा नदी पर बांध निर्माण के कारण विस्थापित हो रहे लोगों के अधिकारों की रक्षा करना था। मेधा पाटकर के नेतृत्व में इस आंदोलन ने सरकार को विस्थापित लोगों के पुनर्वास और मुआवजे की मांग पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया।

निष्कर्ष

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी पहचान और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। विभाजन की त्रासदी, सांप्रदायिक हिंसा, और आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं के बावजूद, भारत ने सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की। भारतीय संविधान, पंचवर्षीय योजनाएँ, भूमि सुधार, और पंचायती राज जैसी नीतियों ने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज का भारत, जो विभिन्न चुनौतियों और परिवर्तनों के बीच उभरा है, एक मजबूत, आत्मनिर्भर, और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में विश्व मंच पर अपनी पहचान बना चुका है।

Bihar board class 8th social science notes समाधान

सामाजिक  विज्ञान – हमारी दुनिया भाग 3
आध्यायअध्याय का नाम
1.संसाधन
1A.भूमि, मृदा एवं जल संसाधन
1B.वन एवं वन्य प्राणी संसाधन
1C.खनिज संसाधन
1D.ऊर्जा संसाधन
2.भारतीय कृषि
3उद्योग
3Aलौह-इस्पात उद्योग
3Bवस्त्र उद्योग
3C.सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग
4.परिवहन
5.मानव ससंधन
6.एशिया (no Available notes)
7भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes)
कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान – अतीत से वर्तमान भाग 3
आध्यायअध्याय का नाम
1.कब, कहाँ और कैसे
2.भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना
3.ग्रामीण ज़ीवन और समाज
4.उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज
5.शिल्प एवं उद्योग
6.अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष (1857 का विद्रोह)
7.ब्रिटिश शासन एवं शिक्षा
8.जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ
9.महिलाओं की स्थिति एवं सुधार
10.अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
11.कला क्षेत्र में परिवर्तन
12.राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
13.स्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म
14.हमारे इतिहासकार कालीकिंकर दत्त (1905-1982)
सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3
अध्यायअध्याय का नाम
1.भारतीय संविधान
2.धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार
3.संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि)
4.कानून की समझ
5.न्यायपालिका
6.न्यायिक प्रक्रिया
7.सहकारिता
8.खाद्य सुरक्षा

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