उपनिवेशवाद और जनजातीय समाज का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। उपनिवेशवाद ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। इसने जनजातीय समाज को भी गहरे स्तर पर प्रभावित किया
जिससे उनके जीवन में कई बदलाव आए। Class 8 Social science History Chapter 4 Notes “उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज” में, हम इन दोनों पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे और समझेंगे कि कैसे उपनिवेशवाद ने जनजातीय समाज पर प्रभाव डाला।
इतिहास का यह अध्ययन हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के लिए संघर्ष कितना महत्वपूर्ण होता है और हमें अपने अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। जनजातीय समाज के संघर्ष और प्रतिरोध हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम अपने समाज की समृद्धि और विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।
उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज – BSEB Class 8 Social science History Chapter 4 Notes
जनजातीय समाज की यह यात्रा हमें उनके सांस्कृतिक धरोहर की गहराई और विविधता को समझने का अवसर प्रदान करती है। उनके संघर्ष और प्रतिरोध हमें यह सिखाते हैं कि कैसे एकजुटता और दृढ़ता से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने समाज को सशक्त बना सकते हैं।
उपनिवेशवाद का अर्थ
उपनिवेशवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश या क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करता है और वहाँ के संसाधनों का दोहन करता है। उपनिवेशवाद का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ प्राप्त करना और अपनी राजनीतिक शक्ति को बढ़ाना होता है। भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद का प्रभाव 18वीं शताब्दी के मध्य से 20वीं शताब्दी के मध्य तक रहा।
भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक उद्देश्यों से भारत में प्रवेश किया, लेकिन धीरे-धीरे उसने राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित कर लिया। ब्रिटिश शासन के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और नीतियाँ लागू की गईं, जिनका प्रभाव भारतीय समाज और जनजातीय समुदायों पर पड़ा।
आर्थिक नीतियाँ:– ब्रिटिशों ने भारत में कई आर्थिक नीतियाँ लागू कीं, जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय संसाधनों का दोहन और ब्रिटेन के लिए अधिकतम लाभ कमाना था। इनमें से कुछ प्रमुख नीतियाँ निम्नलिखित हैं:
- जमींदारी व्यवस्था: स्थायी बंदोबस्त के माध्यम से भूमि के राजस्व को निश्चित कर दिया गया और जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया गया। इससे किसानों की स्थिति खराब हो गई।
- रैयतवाड़ी और महलवाड़ी व्यवस्था: इन व्यवस्थाओं के तहत किसानों से सीधे राजस्व वसूला गया, जिससे किसानों पर भारी करों का बोझ पड़ा।
सामाजिक नीतियाँ
ब्रिटिशों ने भारतीय समाज में कई सामाजिक सुधारों का प्रयास किया, जैसे सती प्रथा का उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन, और बाल विवाह पर प्रतिबंध। हालांकि, इन सुधारों का जनजातीय समाज पर सीमित प्रभाव पड़ा, क्योंकि उनकी सामाजिक संरचना और परंपराएँ शेष भारतीय समाज से भिन्न थीं।
राजनीतिक नीतियाँ –
ब्रिटिशों ने भारत में अपनी राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने के लिए विभिन्न राजनीतिक नीतियाँ अपनाईं। इनमें विभाजन और शासन की नीति (Divide and Rule) शामिल थी, जिससे भारतीय समाज में फूट डालकर अपनी सत्ता को बनाए रखा जा सके।
जनजातीय समाज की विशेषताएँ:- जनजातीय समाज का ढांचा और उनकी जीवनशैली शेष भारतीय समाज से भिन्न होती है। जनजातीय समाज की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- भौगोलिक वितरण: जनजातीय समाज मुख्यतः पहाड़ी, जंगल और दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करता है। वे अपनी पारंपरिक भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होते हैं।
- आजीविका: जनजातीय समाज की आजीविका मुख्यतः कृषि, शिकार, मछली पकड़ना और जंगलों से प्राप्त संसाधनों पर निर्भर होती है।
- सामाजिक संरचना: जनजातीय समाज में सामूहिकता की भावना प्रबल होती है। यहाँ परंपरागत नेताओं, जैसे मुखिया या ग्राम प्रधान का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
- धार्मिक विश्वास: जनजातीय समाज के लोग प्रकृति पूजा करते हैं और विभिन्न देवी-देवताओं में विश्वास रखते हैं। उनके धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार प्रकृति और कृषि पर आधारित होते हैं।
उपनिवेशवाद का जनजातीय समाज पर प्रभाव:- ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जनजातीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। इनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर इसका असर पड़ा, जो निम्नलिखित हैं:
भूमि और वन अधिकार:- ब्रिटिशों ने भूमि और वन अधिकारों पर कई कानून लागू किए, जिनसे जनजातीय समाज की पारंपरिक भूमि और जंगलों पर अधिकार सीमित हो गए। इससे उनकी आजीविका पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- वन कानून: ब्रिटिशों ने वन क्षेत्र को आरक्षित करने के लिए विभिन्न वन कानून लागू किए, जिनसे जनजातीय लोगों का जंगलों पर अधिकार समाप्त हो गया। इससे उनके शिकार, मछली पकड़ने और वन उत्पादों पर निर्भरता में कमी आई।
- भूमि अधिग्रहण: ब्रिटिशों ने बुनियादी ढांचे के विकास और औद्योगिकीकरण के लिए जनजातीय भूमि का अधिग्रहण किया, जिससे जनजातीय लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा।
आर्थिक शोषण:- ब्रिटिशों ने जनजातीय समाज का आर्थिक शोषण किया और उनके पारंपरिक आर्थिक ढांचे को नष्ट कर दिया। इससे जनजातीय लोगों की गरीबी और बेरोजगारी बढ़ गई।
- शोषणकारी नीतियाँ: ब्रिटिशों ने जनजातीय क्षेत्रों में शोषणकारी नीतियाँ लागू कीं, जिससे जनजातीय लोगों को कम मजदूरी पर काम करना पड़ा।
- हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग: जनजातीय समाज के पारंपरिक हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी आय में कमी आई।
सांस्कृतिक परिवर्तन:- ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जनजातीय समाज की सांस्कृतिक संरचना पर भी प्रभाव डाला। उनके परंपरागत रीति-रिवाजों, भाषाओं और धार्मिक विश्वासों में बदलाव आया।
- धार्मिक मिशनरी गतिविधियाँ: ब्रिटिश शासन के दौरान कई ईसाई मिशनरी जनजातीय क्षेत्रों में आए और उन्होंने जनजातीय लोगों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया। इससे उनकी पारंपरिक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान में बदलाव आया।
- शिक्षा और भाषा: ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों में अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी शिक्षा का प्रसार हुआ, जिससे उनकी पारंपरिक भाषाओं और ज्ञान प्रणालियों में कमी आई।
जनजातीय विद्रोह और प्रतिरोध:- जनजातीय समाज ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ विभिन्न विद्रोहों और प्रतिरोध आंदोलनों का आयोजन किया। इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोह निम्नलिखित हैं:
- संथाल विद्रोह (1855-56):_ संथाल विद्रोह 1855-56 में बिहार और पश्चिम बंगाल के संथाल जनजाति द्वारा ब्रिटिश शोषण और जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ किया गया था। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे प्रमुख जनजातीय विद्रोहों में से एक था, जिसमें संथालों ने संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- बिरसा मुंडा आंदोलन (1899-1900):- बिरसा मुंडा आंदोलन 1899-1900 में झारखंड के मुंडा जनजाति द्वारा ब्रिटिश शासन और जमींदारों के शोषण के खिलाफ किया गया था। बिरसा मुंडा ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और उन्होंने जनजातीय समाज की धार्मिक और सामाजिक पुनरुत्थान के लिए प्रयास किया।
- भील विद्रोह:- भील जनजाति ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न विद्रोहों का आयोजन किया। इनमें 1818-19 का भील विद्रोह प्रमुख था, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों और उनके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष किया।
निष्कर्ष
उपनिवेशवाद और जनजातीय समाज का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे बाहरी हस्तक्षेप ने भारतीय समाज की संरचना और जनजातीय समाज के जीवन को प्रभावित किया। Class 8 Social science History Chapter 4 Notes के माध्यम से हमने देखा कि कैसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जनजातीय समाज की भूमि, आर्थिक स्थिति, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक पहचान को बदल दिया।
Bihar board class 8th social science notes समाधान
सामाजिक विज्ञान – हमारी दुनिया भाग 3 |
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आध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | संसाधन |
1A. | भूमि, मृदा एवं जल संसाधन |
1B. | वन एवं वन्य प्राणी संसाधन |
1C. | खनिज संसाधन |
1D. | ऊर्जा संसाधन |
2. | भारतीय कृषि |
3 | उद्योग |
3A | लौह-इस्पात उद्योग |
3B | वस्त्र उद्योग |
3C. | सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग |
4. | परिवहन |
5. | मानव ससंधन |
6. | एशिया (no Available notes) |
7 | भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes) |
कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान – अतीत से वर्तमान भाग 3 |
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सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3 |
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अध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | भारतीय संविधान |
2. | धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार |
3. | संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि) |
4. | कानून की समझ |
5. | न्यायपालिका |
6. | न्यायिक प्रक्रिया |
7. | सहकारिता |
8. | खाद्य सुरक्षा |